Santa, Christmas, College and Nainital

बात दिसंबर 1995 की है। हमारे हिंदू कॉलेज में सर्दी की छुट्टियां हो रखी थी। और हम लोग हॉस्टल में ऐसे ही वेल्ले तफरी काट रहे थे। अच्छे से ध्यान नहीं है, पर शायद जेब में इतने पैसे नहीं रहे होंगे कि उन छुट्टियों में घर जाया जा सके। छुट्टियों में अगर आप अपने घर नहीं गए हो तो हॉस्टल में एक अलग तरह का सन्नाटा होता है। क्योंकि आपके अधिकतर साथी छुट्टियां मनाने घर जा चुके होते हैं, और जो थोड़े बहुत पीछे रुके हुए होते हैं वो भी दिन में कहीं ना कहीं बाहर निकल जाने का बहाना ढूंढते हैं... और दिल्ली में ऐसे बहानों की कमी कभी रही नहीं। तो हम लोग पड़े हुए थे ऐसे हीं। दिन में किसी कमरे में, शाम को किसी और कमरे में, और रात को किसी और कमरे में। समय निकालने का बहाना ढूंढते हुए। 'हम लोग'... मतलब ?? मैं, पिंकू, सांटा और संजय पांडे सर। पिंकू और मैं, बिहार के एक छोटे से शहर बोकारो के रहने वाले थे और एक अच्छे भविष्य का सपना लिए कक्षा 12वीं के बाद दिल्ली आए थे। नाओरेम सांटाक्रूज सिंह, यानि सांटा, उसी भविष्य की तलाश में मनीपुर के काकचिंग से दिल्ली आया था। संजय पांडे सर हमसे एक वर्ष सी...